विश्व शांति के लिए युद्ध नहीं बुद्ध की राह ही कारगर साबित होगी

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    विश्व के विभिन्न देशों के मध्य बड़े स्तर पर स्थायी शत्रुता पनप रही है। पश्चिम एशिया में युद्ध का दायरा जिस तरह फैल रहा है, उसका सिरा कहां तक जा सकता है और इसके क्या नतीजे हो सकते हैं, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। भारत ने चिंता जताते हुए युद्ध में शामिल सभी पक्षों से संयम बरतने का आह्वान किया है और यह भी कहा कि अगर टकराव नहीं रूका तो कहीं ऐसा न हो कि युद्ध समूचे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लें। हमास के हमले के बाद इजराइल ने जो आक्रामक रूख अख्तियार किया, वह लेबनान और ईरान तक को अपने दायरे में ले रहा है और इसमें शामिल सभी पक्ष केवल खुद को सही और पीड़ित मान रहे हैं। कितना विचित्र है कि संवाद के जरिए समाधान का रास्ता खोजने के बजाय इजराइल, हमास, हिजबुल्ला या ईरान की ओर से युद्ध की घोषणा, हमला और उसके जवाब में उससे बड़ा हमला करके मसले का हल निकालने की कोशिश हो रही है। सवाल है कि युद्ध का जो रास्ता खुद ही एक समस्या है, उसके जरिए किसी मसले का हल निकालने की कोशिश मानवता को कहां लेकर जाएगा? मध्य-पूर्व युद्ध के हालात से उबर ही रहा था कि फिर स्थितियां चिंताजनक बन रही हैं। स्वाभाविक है कि उन इलाकों में रहने वाली आम आबादी के सामने जीवन तक की चुनौती खड़ी हो रही है। दरअसल, भारत की चिंता इस बात से भी जुड़ी हुई है कि अगर इजराइल और ईरान के बीच जारी टकराव ने बेलगाम युद्ध का रास्ता बनता है तो उस समूचे इलाके में रहने वाले भारतीयों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। भारत ने हमेशा युद्ध के बजाय समस्या के हल का रास्ता शांति, संवाद और कूटनीति के जरिए निकालने की वकालत की है। भारत की चिंता इस बात से भी जुड़ी हुई है कि इजराइल और ईरान के बीच टकराव की नई तस्वीर में कहीं दुनिया के और कई देशों के उलझने की स्थिति न बने। दो देशों के बीच जंग से लेकर विश्व युद्धों तक के रूप में दुनिया ने देखा है कि युद्ध का हासिल क्या होता है? इतिहास से लेकर अब तक के तमाम उदाहरण यही साबित करते हैं कि संयम और संवाद के बजाय अगर युद्ध का रास्ता चुना जाता है, तो वह पूरी मानव सभ्यता के लिए खतरनाक ही साबित होता है। अतीत में युद्ध की वजह से मानवता के सामने खड़े हुए त्रासद संकट से सबक लेने के बजाय अगर आधुनिक माने जाने वाले देश भी सैन्य टकराव को प्राथमिक उपाय मानते हैं तो इसे कैसे देखा जाएगा? विडंबना यह है कि आमतौर पर युद्ध के बाद थक कर सभी पक्षों को संवाद और कूटनीति के मंच पर ही आना पड़ता है, ताकि आगे शांति कायम की जा सके। भारत हमेशा से शांति का पक्षधर रहा है और आज भी उसका स्टैण्ड बिल्कुल क्लियर है, लेकिन विश्व के अन्य शक्ति सम्पन्न देशों को इस संबंध में सकारात्मक पहल करने की जरूरत है।