नई दिल्ली। देशभर के किसानों के लिए शनिवार का दिन बड़ी खुशखबरी लेकर आया। मानसून ने केरल में दस्तक दे दी। बीते 4 दिन से मानसून केरल से करीब 40-50 किलोमीटर दूर रूका हुई था, लेकिन अंत: में इसने केरल में दस्तक दे दी। बीते 16 सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब मानसून इतनी जल्दी केरल पहुंच गया। इससे पहले 2009 में मानसून 23 मई को केरल पहुंचा था। यह शनिवार को ही तमिलनाडु और कर्नाटक के कई इलाकों में भी पहुंच सकता है। पिछले साल मानसून 30 मई को आया था। एक हफ्ते में देश के दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों जबकि 4 जून तक मध्य और पूर्वी भारत में मानसून की आहट हो सकती है।
आम तौर पर मानसून 1 जून को केरल पहुंचता है और 8 जुलाई तक पूरे देश पर छा जाता है। यह 17 सितंबर के आस-पास वापस लौटना शुरू करता है और 15 अक्टूबर तक पूरी तरह से वापस चला जाता है। मौसम विज्ञानियों ने बताया कि मानसून की शुरुआत की तारीख और सीजन के दौरान कुल बारिश के बीच कोई संबंध नहीं है। इसके जल्दी या देर से पहुंचने का मतलब यह नहीं है कि यह देश के अन्य हिस्सों को भी उसी तरह कवर करेगा।
1972 में सबसे देरी से केरल पहुंचा था मानसून
मौसम विभाग के मुताबिक बीते 150 साल में मानसून के केरल पहुंचने की तारीखों में काफी अंतर रहा। 1918 में मानसून 11 मई को केरल पहुंच गया था। यह मानसून के जल्दी आने का रिकॉर्ड है। वहीं, 1972 में मानसून 18 जून को केरल पहुंचा था, जो सबसे देर से आने का रिकॉर्ड था।

मौसम विभाग ने इन राज्यों में जताई भारी बारिश की संभावना
मौसम विभाग ने केरल, तटीय और दक्षिण कर्नाटक, कोंकण और गोवा में भारी वर्षा होने की भविष्यवाणी की है। महाराष्ट्र के तटीय जिलों और गोवा में भारी वर्षा की भविष्यवाणी करते हुए रेड अलर्ट जारी किया गया है। गोवा सरकार ने लोगों से नदियों और झरनों से दूर रहने का आग्रह किया है। केरल, कर्नाटक और लक्षद्वीप के तटों पर 27 मई तक मछली पकड़ने और समुद्र में जाने पर रोक लगा दी गई है।
इस साल कैसा रहेगा मानसून?
मौसम विभाग ने संभावना जताई है कि इस साल मानसून सामान्य से बेहतर रहेगा और जून से सितंबर तक खूब बारिश होगी। विभाग के मुताबिक, इस साल 105 प्रतिशत से अधिक यानी 87 सेंटीमीटर बारिश हो सकती है, जो कृषि के लिए अच्छी होगी। आमतौर पर 104 से 110 प्रतिशत के बीच बारिश को सामान्य से अच्छा माना जाता है। इस साल मानसून पर अल नीनो का प्रभाव भी नहीं है। अल नीनो एक तरह की मौसमी घटना है, जिसकी वजह से मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्री सतह का पानी सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो जाता है। इसके चलते पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ती हैं और गर्म पानी पूर्व यानी अमेरिका के पश्चिमी तट की ओर जाने लगता है। अगर अल नीनो दक्षिण अमेरिका वाले क्षेत्र की तरफ सक्रिय होता है, तो भारत में कम बारिश होती है।
