Operation Sindoor : ऑपरेशन सिंदूर को क्रूरतम पहलगाम आतंकी हमले की सोची-समझी सटीक प्रतिक्रिया करार देते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि यह अब भारत की नयी नीति का आधार बन गया है। जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम को लेकर किसी भी तीसरे पक्ष की ओर से कोई मध्यस्थता नहीं हुई। उन्होंने कहा ‘‘इसका सवाल ही नहीं उठता।’’ विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि इस सैन्य कार्रवाई को रोकने का व्यापार से कोई संबंध नहीं था। जयशंकर ने राज्यसभा में पहलगाम में आतंकवादी हमले के जवाब में भारत के मजबूत, सफल एवं निर्णायक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विशेष चर्चा’’ में हस्तक्षेप करते हुए यह भी कहा कि भारत ने बरसों बरस आतंकवाद का दंश सहा है और ‘‘ऑपरेशन सिंदूर से हमने लक्ष्य हासिल किए। उच्च सदन में यह चर्चा मंगलवार को शुरू हुई थी। विदेश मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच 22 अप्रैल से 16 जून के बीच फोन पर कोई बातचीत नहीं हुई।
#WATCH | "…Main unko kehna chahta hoon, woh kaan kholke sun le. 22 April se 16 June tak, ek bhi phone call President Trump aur Prime Minister Modi ke beech mein nahi hua." says EAM Dr S Jaishankar during discussion on Operation Sindoor in Rajya Sabha pic.twitter.com/0ZYkdOGae4
— ANI (@ANI) July 30, 2025
विपक्ष सरकार पर यह आरोप लगा रहा है कि अमेरिका की मध्यस्थता और व्यापारिक दबाव के कारण भारत ने सैन्य अभियान रोका। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भी भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम कराने का दावा किया है। जयशंकर ने कहा, ‘भारत अब सीमा पार से आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। पाकिस्तान की हर आक्रामकता का जवाब हम ऑपरेशन सिंदूर जैसे ठोस कदमों से देते रहेंगे।’ उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के जरिये ‘पाकिस्तान ने ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघी है।’’
विदेश मंत्री ने कहा कि इस हमले के दोषियों को जवाबदेह ठहराना और पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करना आवश्यक था। उन्होंने कहा ‘‘ऑपरेशन सिंदूर आतंकवाद पर भारत का जवाब है और आतंकवाद पर भारत के जवाब को पूरी दुनिया ने देखा।’’ उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को क्रूरतम पहलगाम आतंकी हमले की सोची-समझी सटीक प्रतिक्रिया करार देते हुए कहा कि यह अब भारत की नयी नीति का आधार बन गया है।उन्होंने पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित करने और अटारी सीमा बंद करने जैसे कूटनीतिक निर्णयों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले के बाद सरकार की सुरक्षा मामलों की समिति की तत्काल बैठक हुई जिसमें कई निर्णय लिए गए।
जयशंकर ने कहा ‘‘अहम निर्णय सिंधु जल संधि को निलंबित करने का हुआ। एक अनूठी संधि है और मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कहीं भी ऐसी संधि होगी जिसके तहत अपनी नदियों के पानी का बड़ा हिस्सा दूसरे देश को दिया जाता है। हमले के बाद इस संधि को निलंबित करने का निर्णय लिया गया क्योंकि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।’’ विदेश मंत्री ने आरोप लगाया कि इस संधि पर 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हस्ताक्षर किया था। उन्होंने कहा कि यह संधि ‘शांति स्थापित करने के लिए नहीं, बल्कि तुष्टिकरण की नीति के तहत’ की गई थी और नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस ऐतिहासिक भूल को सुधारा है। उन्होंने बताया कि नौ मई को अमेरिका के उप राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी को भारत पर बड़े हमले की पाकिस्तान की साजिश के बारे में बताया था। उन्होंने कहा इसके बाद ‘‘भारत ने जो किया, अपनी रक्षा के लिए किया। आगे भी अगर पाकिस्तान हमला करेगा तो उसे ऐसा ही करारा जवाब दिया जाएगा।’’
विदेश मंत्री के अनुसार, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुनिया को यह संदेश दिया कि वह किसी प्रकार की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेगा और परमाणु धमकियों या ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। जयशंकर ने कहा, ‘हमने स्पष्ट कर दिया कि भारत के मामलों में कोई तीसरा पक्ष नहीं है। न तो कोई मध्यस्थता होगी और न ही परमाणु हथियारों की आड़ में कोई धमकी चलेगी।’ जयशंकर ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए आतंकी हमलों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में 1947 के बाद से सीमा पार से हमले होते रहे, हर हमले के बाद पाकिस्तान से बातचीत भी होती रही। ‘‘लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं होती थी।’’ उन्होंने कहा कि आतंकवाद को खत्म करना नरेन्द्र मोदी सरकार का ‘ग्लोबल एजेंडा’ है।
विदेश मंत्री ने कहा ‘‘हम आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। हमने पाकिस्तान के खिलाफ कई कदम उठाए, हमने हर मंच पर पाकिस्तान को बेनकाब किया। मुंबई हमले के दोषी तहव्वुर राणा को हमारी सरकार भारत लाई ।’’ उन्होंने कहा कि जब ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के बहावलपुर और मुरीदके में आतंकी ढांचों को जमींदोज किया गया तो ‘‘हमने एक तरह से यह ‘ग्लोबल सर्विस’ की।’’ उन्होंने कहा ‘‘अगर आप ऑपरेशन सिंदूर का प्रभाव देखना चाहते हैं तो आतंकियों के कफ़न दफ़न और पाकिस्तानी हवाई अड्डों की तबाही के वीडियो देखिये।’’
जयशंकर ने यह भी कहा कि वैश्विक मंचों पर आतंकवाद को एजेंडे में शामिल कराने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीति को जाता है। उन्होंने बताया कि भारत ने पाकिस्तान पर एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) के जरिए दबाव बनाया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य न होते हुए भी पुरजोर प्रयास किया जिससे ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) गुट को को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन घोषित किया गया। टीआरएफ ने पहलगाम आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी। जयशंकर ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकवाद के प्रति भारत का रुख स्पष्ट करने एवं पाकिस्तान की असलियत उजागर करने के लिए विभिन्न देशों में गए बहुदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी जयशंकर ने परोक्ष हमला बोला। उन्हें ‘‘चाइना गुरू’’ करार देते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि वह चीनी राजदूत से ‘निजी ट्यूशन’ लेते हैं। उन्होंने कहा कि आज चीन और पाकिस्तान के साथ आने की बात की जाती है लेकिन यह कैसे हुआ, यह नहीं बताया जाता। ‘‘ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बीच में हमने पाक अधिकृत कश्मीर को छोड़ दिया।’’ पाकिस्तान ने 1962 के युद्ध में भारत की हार के कुछ ही महीनों बाद, मार्च 1963 में अक्साई चिन को चीन को सौंप दिया था। हालांकि भारत की विदेश नीति का यह स्पष्ट रुख है कि यह हिस्सा भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान ने अवैध तरीके से यह क्षेत्र चीन को सौंपा है।
जयशंकर ने कहा कि चीन और पाकिस्तान की नजदीकी में हंबन टोटा बंदरगाह की भी अहम भूमिका है जिसके लिए 2005 में हस्ताक्षर हुए थे और तीन साल बाद यह बंदरगाह बन कर तैयार हुआ था। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों में ऐसे फैसले हुए हैं जो चीन के अनुकूल थे। अपने चीन दौरे का जिक्र करते हुए जयशंकर ने कहा ‘‘मैंने आतंकवाद, चीन के साथ विवादित सीमा बिंदुओं से सैनिकों को हटाए जाने और व्यापार प्रतिबंधों पर बात की थी।’’ उन्होंने चीन के साथ संबंधों के बारे में कहा कि ये संबंध परस्पर हित, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर सम्मान के आधार पर विकसित होंगे।