न्यूयॉर्क। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ‘ग्लोबल साउथ’ देशों के बीच अधिक एकजुटता, बहुपक्षवाद के प्रति नयी प्रतिबद्धता और संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य वैश्विक संस्थाओं में सुधार के लिए सामूहिक प्रयास का आह्वान किया है। विदेश मंत्री ने यह टिप्पणी मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र से इतर समान विचारधारा वाले ‘ग्लोबल साउथ’ देशों की एक उच्च-स्तरीय बैठक में की। सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में बैठक का विवरण साझा करते हुए जयशंकर ने कहा कि बढ़ती वैश्विक चिंताओं और विभिन्न तरह के जोखिमों के मद्देनजर यह स्वाभाविक है कि ‘ग्लोबल साउथ’ समाधान के लिए बहुपक्षवाद की ओर रुख करे’’।
जयशंकर ने ‘ग्लोबल साउथ’ एकजुटता को मजबूत करने का प्रयास किया
‘ग्लोबल साउथ’ वैश्विक मामलों में कैसे शामिल हो सकता है, इस संबंध में एक व्यवस्थित दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए मंत्री ने विकासशील देशों की सामूहिक आवाज और प्रभाव को मजबूत करने के लिए पांच प्रमुख प्रस्ताव रखे। उन्होंने एकजुटता बढ़ाने और सहयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ‘ग्लोबल साउथ’ के बीच परामर्श को मजबूत करने के लिए मौजूदा मंचों का उपयोग करने के महत्व पर जोर दिया। जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधार और समग्र रूप से बहुपक्षवाद का भी आह्वान किया। उन्होंने ‘‘टीकों, डिजिटल क्षमताओं, शिक्षा क्षमताओं, कृषि-प्रथाओं और एसएमई (लघु एवं मध्यम उद्यम)’’ को प्रमुख उदाहरण बताते हुए कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ को अपने विशिष्ट गुणों, अनुभवों और उपलब्धियों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाना चाहिए ताकि साथी देशों को लाभ मिल सके।
वैश्विक चुनौतियों के प्रति एक समान दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए मंत्री ने कहा कि केवल ‘ग्लोबल नॉर्थ’ के दृष्टिकोणों के साथ तालमेल बिठाने के बजाय जलवायु कार्रवाई और जलवायु न्याय जैसे क्षेत्रों में ‘ग्लोबल साउथ’ को ऐसी पहल करनी चाहिए जो उसके हितों की पूर्ति करें। ‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित राष्ट्र के रूप में जाना जाता है और ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित हैं, जबकि ग्लोबल नॉर्थ देश अधिक संपन्न और धनी माने जाते हैं। इसमें अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय राष्ट्रों के साथ-साथ जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान तथा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश भी शामिल हैं। ‘ग्लोबल नॉर्थ’ कोई भौगोलिक अवधारणा नहीं बल्कि मुख्य रूप से यह एक आर्थिक और राजनीतिक अवधारणा है।
उन्होंने उभरती प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर चर्चा में शामिल होने के महत्व पर भी जोर दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकासशील देश विकसित हो रही वैश्विक व्यवस्था में पीछे न छूट जाएं। भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज को लगातार बुलंद करता रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराता रहा है कि विकासशील देश वैश्विक एजेंडे को आकार देने में सार्थक भूमिका निभाएं।