Aravalli Mountain Range Case : नई दिल्ली। कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि अरावली पहाड़ियों के मामले में आदेश के बाद अब उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के विषय पर भी हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि यह संस्था बिना किसी भय या पक्षपात के और कानून के अनुरूप स्वतंत्र रूप से कार्य कर सके। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि पिछले एक दशक में एनजीटी की शक्तियों को पूरी तरह से कमज़ोर कर दिया गया है।
NGT के मामले में SC हस्तक्षेप करे : जयराम
रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘कल उच्चतम न्यायालय ने अरावली की परिभाषा में बदलाव को लेकर 20 नवंबर, 2025 को दिए गए अपने ही फैसले को स्वतः संज्ञान लेते हुए वापस ले लिया। जबकि मोदी सरकार ने उस फैसले को पूरे उत्साह के साथ अपनाया था। उच्चतम न्यायालय का यह कदम अत्यंत आवश्यक और स्वागतयोग्य था।’ उन्होंने कहा कि अब पर्यावरण से जुड़े तीन अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण और तात्कालिक मुद्दे हैं, जिन पर माननीय उच्चतम न्यायालय को अरावली मामले की तरह ही स्वतः संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करना चाहिए।
कल सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की परिभाषा में बदलाव को लेकर 20 नवंबर 2025 को दिए गए अपने ही फैसले को स्वतः संज्ञान लेते हुए वापस ले लिया। जबकि मोदी सरकार ने उस फैसले को पूरे उत्साह के साथ अपनाया था। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम अत्यंत आवश्यक और स्वागतयोग्य था।
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) December 30, 2025
अब पर्यावरण से जुड़े तीन…
रमेश ने कहा, ‘6 अगस्त 2025 को उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान सरकार और भारत सरकार के सरिस्का टाइगर रिज़र्व की सीमाओं को दोबारा तय करने के प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी, इसके तहत लगभग 57 बंद खदानों को खोलने का रास्ता बनाया जा रहा था। इस प्रस्ताव को साफ तौर से खारिज कर देना चाहिए।’रमेश के मुताबिक, 18 नवंबर, 2025 को उच्चतम न्यायालय ने अपने ही 16 मई, 2025 के उस फैसले की समीक्षा का दरवाज़ा खोल दिया था, जिसमें पूर्व प्रभाव से दी जाने वाली पर्यावरणीय मंज़ूरियों पर रोक लगाई गई थी। उन्होंने कहा कि ऐसी मंज़ूरियां न्यायशास्त्र के बुनियादी सिद्धांत के विरुद्ध हैं और शासन व्यवस्था का उपहास बनाती हैं।
कांग्रेस नेता ने इस बात पर जोर दिया, ‘इस फैसले की समीक्षा अनावश्यक थी। पूर्व प्रभाव से मंज़ूरी कभी भी नहीं दी जानी चाहिए।’ उनका कहना है, ‘क़ानूनों, नियमों और प्रावधानों को अक्सर जानबूझकर इस भरोसे के साथ दरकिनार किया जाता है कि परियोजना शुरू हो जाने के बाद निर्णय प्रक्रिया को “मैनेज” कर लिया जाएगा।’ रमेश ने कहा, ‘ राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना अक्टूबर, 2010 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम के तहत, उच्चतम न्यायालय से विस्तृत परामर्श और उसके पूर्ण समर्थन के साथ की गई थी तथा पिछले एक दशक में इसकी शक्तियों को पूरी तरह से कमज़ोर कर दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘अब उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक है, ताकि एनजीटी बिना किसी भय या पक्षपात के, कानून के अनुरूप स्वतंत्र रूप से कार्य कर सके।’




