Sunday, November 17, 2024
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Jaipur Former Royal Family Ownership Case : पूर्व राजघराने की याचिका खारिज…

जयपुर। जयपुर के 180 साल पुराने अरबों के महल को लेकर जयपुर का पूर्व राजघराना और राज्य सरकार आमने-सामने है। ये महल है सवाई मानसिंह टाउन हॉल, जहां ब्रिटिश राज में राजपूताना हाईकोर्ट फैसले करता था। आपको बता दें आजादी के बाद यहां राजस्थान विधानसभा चलती थी। कानून बनते थे। आज उसी जगह के मालिकाना हक का विवाद राजस्थान हाईकोर्ट में है।

सवाई मानसिंह टाउनहॉल में पहले राजस्थान विधानसभा चलती थी। साल 2000 के बाद यहां से विधानसभा ज्योति नगर में नए भवन में शिफ्ट हो गई। इसके बाद राज परिवार ने 7 अगस्त 2019 को कोर्ट में दावा पेश कर सरकार से वो टाउनहॉल वापस देने को कहा। अधीनस्थ कोर्ट ने पूर्व राजपरिवार की अस्थाई निषेधाज्ञा के प्रार्थना-पत्र को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ पूर्व राजपरिवार ने हाई कोर्ट में अपील की थी।

अब राज्य सरकार यहां 100 करोड़ रुपए में अंतरराष्ट्रीय स्तर का म्यूजियम बनाना चाहती है। इस पर काम भी शुरू हो गया था। हाईकोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था। सवाई मानसिंह टाउनहॉल (पुरानी विधानसभा) और लेखाकार कार्यालय (होमगार्ड कार्यालय) सरकार के पास ही रहेगा। इसे लेकर पूर्व राजपरिवार के सदस्यों की याचिकाएं आज राजस्थान हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। आज सरकार के पक्ष में फैसला आने के बाद अब वो स्टे भी हट गया है। जस्टिस नरेंद्र कुमार ढड्ढा की अदालत ने पद्मिनी देवी और अन्य की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यह दोनों संपत्तियां सरकार के पास ही रहेगी। अदालत ने 4 अगस्त को मामले में सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था।

आपको बता दें पूर्व राजपरिवार की ओर से दायर अपीलों में कहा गया था कि टाउनहॉल और जलेब चौक परिसर स्थित लेखाकार कार्यालय को कोवेनेंट (अंग्रेजी शासन के दौरान बना प्रसंविदा का एक नियम) में निजी संपत्ति माना गया था। सरकार को उसके उपयोग के लिए लाइसेंस पर दिया गया था। इसके अनुसार जब तक सरकार इस संपत्ति को उपयोग में लेगी। तब तक वह इसका रखरखाव करेगी, लेकिन अब जिस उद्देश्य से यह संपत्तियां सरकार को दी गई थी। उस उद्देश्य से सरकार इनका उपयोग नहीं कर रही है। ऐसे में यह संपत्तियां वापस दिलाई जाएं।

वहीं सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश महर्षि ने कोर्ट में कहा कि कोवेनेंट में उपरोक्त संपत्तियां राज्य सरकार को देने के बारे में लिखा गया है। सरकार को यह संपत्ति कोवेनेंट (लाइसेंस पर दी गई संपत्तियां) से मिली है, न की लाइसेंस के जरिए। आपको बता दें कोवेनेंट को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। जिस दिन कोवेनेंट लिखा गया था। उस समय वहां विधानसभा अस्तित्व में ही नहीं थी। ऐसे में सरकार उपरोक्त परिसरों का कोई भी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है।

दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने 4 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए अदालत ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया।

बता दें राजस्थान में पुरानी विधानसभा के साथ कई ऐतिहासिक बातें जुड़ी हुई हैं। साल 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन हुआ था। उस समय विधानसभा सवाई मानसिंह टाउनहॉल में चलती थी। विधानसभा मामलों के एक्सपर्ट और विधानसभा के पूर्व रिसर्च एंड रेफरेंस विंग के हेड कैलाश सैनी के मुताबिक राजस्थान विधानसभा में 1953 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भाषण हुआ था। इसके बाद नवंबर 2001 में ज्योति नगर स्थित विधानसभा के नए भवन का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन आए थे।

Mamta Berwa
Mamta Berwa
JOURNALIST
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