लखनऊ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने हाल ही में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदू शादियों के लिए कन्यादान जरूरी नहीं है.अदालत ने कहा कि केवल सप्तपदी ही हिंदू विवाह का एक आवश्यक समारोह है और हिंदू विवाह अधिनियम में शादी के लिए कन्यादान का प्रावधान नहीं है.न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने गत 22 मार्च को आशुतोष यादव द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 का भी जिक्र किया.
हिंदू विवाह के लिए 7 फेरे जरूरी
अदालत ने कहा, ‘हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 इस प्रकार है,हिंदू विवाह के लिए समारोह- (1) एक हिंदू विवाह किसी भी पक्ष के प्रथागत संस्कारों और समारोहों के अनुसार मनाया जा सकता है.(2) ऐसे संस्कारों और समारोहों में सप्तपदी (यानी दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के समक्ष संयुक्त रूप से 7 फेरे लेना) शामिल है.सातवां फेरा लेने पर विवाह पूर्ण और बाध्यकारी हो जाता है.’
”कन्यादान को आवश्यक नहीं बताता है”
न्यायालय ने कहा, ‘इस तरह हिंदू विवाह अधिनियम केवल सप्तपदी को हिंदू विवाह के एक आवश्यक समारोह के रूप में मान्यता प्रदान करता है.वह हिंदू विवाह के अनुष्ठान के लिए कन्यादान को आवश्यक नहीं बताता है.अदालत ने कहा कि कन्यादान का समारोह किया गया था या नहीं यह मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए जरूरी नहीं होगा और इसलिए इस तथ्य को साबित करने के लिए अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के तहत गवाहों को नहीं बुलाया जा सकता.
इस मामले पर कोर्ट ने सुनाया फैसला
पुनरीक्षण याचिका दाखिल करने वाले ने इसी साल 6 मार्च को अपर सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक अदालत प्रथम) द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी थी.इस आदेश में अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान दो गवाहों के पुनर्परीक्षण के लिए उन्हें बुलाने से इनकार कर दिया था.
न्यायालय ने मुकदमे की कार्यवाही के दौरान अभियोजन पक्ष के 2 गवाहों को फिर से गवाही के लिए बुलाने से इनकार कर दिया था. पुनरीक्षण आवेदन भरते समय यह तर्क दिया गया कि अभियोजन पक्ष के गवाह नंबर एक और उसके पिता जो अभियोजन पक्ष के गवाह नंबर 2 थे, के बयानों में विरोधाभास था और इस तरह उनकी फिर से गवाही जरूरी थी.
अदालत के सामने यह बात भी आई कि अभियोजन पक्ष ने कहा था कि वर्तमान विवाद में जोड़े के विवाह के लिए कन्यादान आवश्यक था.ऐसे में अदालत ने समग्र परिस्थितियों पर विचार करते हुए कहा कि हिंदू विवाह के अनुष्ठान के लिए कन्यादान आवश्यक नहीं है.पीठ को अभियोजन पक्ष के गवाह संख्या एक और उसके पिता की फिर से गवाही की अनुमति देने का कोई पर्याप्त कारण नहीं मिला और पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी.