Sunday, November 17, 2024
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Rajasthan Election : राजस्थान के सत्ता समीकरणों में नहीं चला गहलोत का जादू, कहते रहे कुर्सी नहीं छोड़ रही, आखिर कुर्सी ने ही साथ छोड़ दिया

जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा चुनाव से लगभग तीन महीने पहले कहा था, “मैं कई बार मुख्यमंत्री पद छोड़ने की सोचता हूं … पर मुख्यमंत्री पद मुझे नहीं छोड़ रहा। अब आगे क्या होता है देखते हैं।” गहलोत ने तीन अगस्त को राजधानी जयपुर में हल्के फुल्के अंदाज में यह टिप्पणी सरकारी योजना की एक लाभार्थी की इच्छा पर की थी। इस महिला ने सरकारी योजना से अपने सफल इलाज के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताते हुए कहा था कि वह चाहती हैं कि गहलोत ही आगे मुख्यमंत्री बने रहें। लेकिन गहलोत की इस टिप्पणी के अलग-अलग राजनीतिक अर्थ निकाले गए जब कुछ लोगों ने इसे कांग्रेस आलाकमान के लिए संकेत तक कहा। गहलोत ने बाद में कई बार यह बात दोहराई।

यह अलग बात है कि अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री के रूप में यह तीसरा कार्यकाल उतना ‘आरामदायक’ नहीं रहा। साल 2020 में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपने कुछ समर्थक विधायकों के साथ गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की। हालांकि पार्टी आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझ गया। गहलोत ने पायलट के लिए “निकम्मा”, “नकारा” और “गद्दार” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। साल 2022 में गहलोत के समर्थक विधायकों ने जयपुर में बुलाई गई कांग्रेस विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करके पार्टी आलाकमान की अवहेलना की। यह बैठक इसलिए बुलाई गई थी ताकि पायलट के लिए राज्य में मुख्यमंत्री पद का मार्ग प्रशस्त कर दे।

Jodhpur: Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot shows victory sign and ink-marked finger after casting his vote for the Rajasthan Assembly election, in Jodhpur, Saturday, Nov. 25, 2023. (PTI Photo) (PTI11_25_2023_000068B)

राजनीतिक जानकारों के अनुसार गांधी परिवार चाहता था कि गहलोत राज्य की राजनीति छोड़कर पार्टी के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें। लेकिन जनता को ‘मैं थांसू दूर कोनी’ (मैं आपसे दूर नहीं) का भरोसा देते हुए गहलोत राजस्थान में टिके रहने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने खुद को राजस्थान में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने के लिए एक तरह से झोंक दिया। बीते कुछ दशकों में, परंपरागत रूप से राजस्थान में हर विधानसभा चुनाव में राज यानी सरकार बदल जाती है… एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा। कोई भी पार्टी लगातार दो बार सरकार नहीं बना सकी है।

इस ‘रिवाज’ को बदलने के लिए गहलोत ने अनेक कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की। इसमें 500 रुपए में गैस सिलेंडर और सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली शामिल है। गहलोत ने यह सुनिश्चित किया कि हर योजना से उनकी पहचान मजबूत हो। अधिकांश पर्यवेक्षकों का मानना है कि अगर कांग्रेस जीत जाती तो उसे एक बार फिर गहलोत को राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में चुनने को मजबूर होना पड़ सकता था। लेकिन इस बार ‘कुर्सी’ ने उनका साथ छोड़ दिया। जिन 199 सीटों पर मतदान हुआ, उनमें से भाजपा ने रविवार शाम तक 115 से अधिक सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया वहीं कांग्रेस 69 सीटों पर सिमटी दिख रही है।

Jodhpur: Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot’s son Vaibhav Gehlot shows ink-marked finger after casting his vote for the Rajasthan Assembly election, in Jodhpur, Saturday, Nov. 25, 2023. (PTI Photo) (PTI11_25_2023_000069B)

इस चुनाव में गहलोत की “विफलता” उनकी पिछली सफलताओं को धूमिल कर सकती है। उनकी सफलता का मुख्य श्रेय उनकी जनता पर पकड़ और ‘छत्तीस कौमों’ में उनकी स्वीकार्यता को दिया जाता रहा है। राज्य में कांग्रेस मोहन लाल सुखाड़िया और हरिदेव जोशी और भारतीय जनता पार्टी के भैरों सिंह शेखावत के बाद, गहलोत एकमात्र राजनेता हैं जो तीन बार -1998-2003, 2008-13 और 2018-23 -राज्य के मुख्यमंत्री बने। सुखाड़िया चार बार मुख्यमंत्री रहे जबकि जोशी और शेखावत तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने।

अशोक गहलोत को राजस्थान में राजनीति का जादूगर और ‘मारवाड़ का गांधी’ भी कहा जाता है। तीन मई 1951 को जन्मे गहलोत ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1974 में एनएसयूआई के अध्यक्ष के रूप में की। वे 1979 तक इस पद पर रहे। उन्होंने पांच बार लोकसभा में जोधपुर का प्रतिनिधित्व किया है। वह 1999 से जोधपुर की सरदारपुरा विधानसभा सीट से लगातार जीते और इस चुनाव में छठी बार यहां से विधायक बने हैं।

उन्होंने 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश शरणार्थियों के शिविरों में काम किया है और वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नजर में आए। बाद में वह राजीव गांधी की ‘गुड बुक’ में भी रहे। कांग्रेस ने उनके नेतृत्व को मानते हुए 2017 में उन्हें गुजरात का पार्टी प्रभारी बनाया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके गृह राज्य में कड़ी राजनीतिक टक्कर दी। अगले साल, 2018 में, उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी एआईसीसी का महासचिव (संगठन) नियुक्त किया गया।

**EDS: IMAGE VIA @ashokgehlot51** Jodhpur: Rajasthan Chief Minister and Congress leader Ashok Gehlot with party chief Mallikarjun Kharge upon the latter’s arrival in the state ahead of the State Assembly elections, in Jodhpur, Monday, Nov. 6, 2023. (PTI Photo)(PTI11_06_2023_000107B)

इससे पहले वह 1979 से 1982 तक जोधपुर में जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं। वह तीन बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं। वह 34 साल की उम्र में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बने व तीन बार इस पद पर रहे। वह जुलाई 2004 से फरवरी 2009 तक एआईसीसी महासचिव रहे। गहलोत की शादी सुनीता गहलोत से हुई। इस दंपति के एक पुत्र और एक पुत्री है। उनके बेटे वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। वैभव ने 2019 का लोकसभा चुनाव जोधपुर सीट से लड़ा लेकिन भाजपा के गजेंद्र सिंह शेखावत से हार गए।

गहलोत और शेखावत एक दूसरे पर प्राय: निशाना साधते रहते हैं। गहलोत ने केंद्रीय मंत्री पर उनकी निर्वाचित सरकार गिराने की कोशिश करने और संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसायटी ‘घोटाले’ में शामिल होने का आरोप लगाया है। इस आरोप पर शेखावत ने उन्हें अदालत में घसीटा। रविवार को भी मतगणना के परिणाम आने के बाद शेखावत ने कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘जादूगर की जादूगरी और तिलिस्म अब समाप्त हो गया है।’

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