Tuesday, March 4, 2025
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Madhabi Buch: बॉम्बे हाईकोर्ट से सेबी की पूर्व प्रमुख माधबी बुच को बड़ी राहत, FIR दर्ज करने के विशेष अदालत के आदेश पर लगाई रोक

Madhabi Puri Buch Gets Relief: बॉम्बे हाईकोर्ट ने सेबी की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और अन्य अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने के विशेष अदालत के आदेश पर 4 सप्ताह की रोक लगा दी। न्यायालय ने कहा कि यह आदेश "मशीनी तरीके" से पारित किया गया था।

Madhabi Puri Buch Gets Relief: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को विशेष अदालत के उस आदेश पर 4 सप्ताह के लिए रोक लगा दी, जिसमें सेबी की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और 5 अन्य अधिकारियों के खिलाफ कथित शेयर बाजार धोखाधड़ी और नियामकीय उल्लंघनों के लिए FIR (प्राथमिकी) दर्ज करने का निर्देश दिया गया था. न्यायालय ने कहा कि यह आदेश ‘मशीनी तरीके’ से पारित किया गया था.

आदेश मशीनी तरीके से पारित किया गया था: बॉम्बे हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति शिवकुमार डिगे की एकल पीठ ने कहा कि विशेष अदालत का 1 मार्च का आदेश बिना विस्तृत जानकारी के और आरोपी की कोई विशेष भूमिका बताए बिना मशीनी तरीके से पारित किया गया था. उच्च न्यायालय ने कहा, ”सभी संबंधित पक्षों को सुनने और विशेष अदालत के आदेश का अध्ययन करने के बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि आदेश विस्तृत जानकारी के बिना और आवेदकों (बुच और अन्य) को कोई विशेष भूमिका दिए बिना पारित कर दिया गया है. इसलिए आदेश पर अगली तारीख तक रोक लगाई जाती है. मामले में शिकायतकर्ता (सपन श्रीवास्तव) को याचिकाओं के जवाब में हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाता है.”

विशेष अदालत के फैसले को रद्द करने की अपील की थी

हाईकोर्ट का यह निर्णय बुच, सेबी के 3 वर्तमान पूर्णकालिक निदेशकों – अश्विनी भाटिया, अनंत नारायण जी और कमलेश चंद्र वार्ष्णेय, बीएसई के प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) सुंदररामन राममूर्ति और इसके पूर्व चेयरमैन तथा जनहित निदेशक प्रमोद अग्रवाल द्वारा दायर याचिकाओं पर आया. याचिकाओं में विशेष अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की अपील की गई थी. इसमें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को 1994 में बीएसई में एक कंपनी को सूचीबद्ध करते समय कथित रूप से धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे और एफआईआर दर्ज करने की अपील की गई थी. याचिकाओं में कहा गया है कि यह आदेश अवैध और मनमाना है. विशेष अदालत ने मीडिया रिपोर्टर सपन श्रीवास्तव की शिकायत पर यह आदेश पारित किया था, जिसमें आरोपियों द्वारा बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी, नियामकीय उल्लंघन और भ्रष्टाचार से जुड़े कथित अपराधों की जांच की अपील की गई थी.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिया ये तर्क

सेबी के 3 अधिकारियों की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विशेष अदालत ने आदेश पारित करते समय पूरी तरह से विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है. मेहता ने तर्क दिया, ”एक अस्पष्ट और परेशान करने वाली शिकायत के आधार पर विशेष अदालत ने FIR दर्ज करने का आदेश दिया है। वर्ष 1994 में कथित तौर पर किए गए किसी काम के लिए सेबी के मौजूदा सदस्यों को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.” उन्होंने दावा किया कि शिकायतकर्ता श्रीवास्तव एक जबरन वसूली करने वाला व्यक्ति है जो एक जनहितैषी व्यक्ति होने की आड़ में काम कर रहा है.

राममूर्ति और अग्रवाल की ओर से वरिष्ठ वकील अमित देसाई ने कहा कि बीएसई के वरिष्ठ सदस्यों के खिलाफ, विशेष रूप से ऐसे तुच्छ आरोपों पर इस तरह की कार्रवाई करना अर्थव्यवस्था पर ही हमला है. देसाई ने कहा, ”यदि आरोपों में कोई दम है, तो हां, हर लोक सेवक पर मुकदमा चलाया जा सकता है, लेकिन वर्तमान मामले जैसे कुछ बेबुनियाद आरोपों पर नहीं.” बुच के वकील सुदीप पासबोला ने मेहता और देसाई द्वारा प्रस्तुत तर्कों को दोहराया।

एसीबी की ओर से पेश हुए सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर ने कहा कि ब्यूरो हाईकोर्ट द्वारा पारित किए गए किसी भी आदेश का पालन करेगा. श्रीवास्तव ने मेहता द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन किया और याचिकाओं का जवाब देने के लिए समय मांगा. श्रीवास्तव अदालत में कभी व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं हुए हैं.

Premanshu Chaturvedi
Premanshu Chaturvedihttp://jagoindiajago.news
समाचारों की दुनिया में सटीकता और निष्पक्षता के साथ नई कहानियों को प्रस्तुत करने वाला एक समर्पित लेखक। समाज को जागरूक और सूचित रखने के लिए प्रतिबद्ध।
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