नैरोबी। केन्या की राजधानी नैरोबी में सोमवार को पहले अफ्रीका जलवायु शिखर सम्मेलन का आगाज हुआ। इस दौरान, जलवायु परिवर्तन में सबसे कम हिस्सेदारी वाले नेताओं ने इस वैश्विक समस्या से निपटने के मुद्दे पर हस्तक्षेप करने एवं वित्तीय मदद उपलब्ध कराए जाने की मांग की. केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो की सरकार और अफ्रीकी संघ ने मंत्रिस्तरीय सत्र की शुरुआत की, जिसमें दर्जन भर से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों का आगमन हो रहा है, जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर ज्यादा सहयोग एवं वित्तपोषण की मांग को उठाने के लिए प्रतिबद्ध है.
रूटो ने जलवायु संकट, अरबों डॉलर की आर्थिक संभावनाओं, नये वित्तीय ढांचे, अफ्रीका के विशाल खनिज भंडार और साझा समृद्धि के सिद्धांत का जिक्र करते हुए कहा, “हमने लंबे समय से इसे एक समस्या के रूप में देखा है. लेकिन, इसमें अपार संभावनाएं भी हैं. हम यहां शिकायतों को सूचीबद्ध करने के लिए एकत्रित नहीं हो रहे हैं।” “पैन अफ्रीकन क्लाइमेट जस्टिस अलायंस” की मिथिका मवेंडा ने सत्र में शामिल नेताओं से कहा कि “अब हमारा समय है”, क्योंकि कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए अफ्रीका को मिलने वाली वार्षिक जलवायु सहायता लगभग 16 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो उसकी वास्तविक जरूरत का दसवां भाग या उससे कम है और प्रदूषण फैलाने वाली प्रमुख कंपनियों के बजट का एक मामूली “अंश” मात्र है.
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टिल ने कहा, “अमीर देशों ने विकासशील देशों को जलवायु वित्त के रूप में हर साल 100 अरब अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई थी. हमें वादे के मुताबिक यह राशि तत्काल उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है।”
साल 2020 में गरीब देशों को जलवायु वित्तपोषण के तहत 83 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक दिया गया था, जो एक वर्ष पहले की तुलना में चार प्रतिशत ज्यादा है, लेकिन 2009 में निर्धारित राशि से अभी भी कम है.सम्मेलन से पहले “पावर शिफ्ट अफ्रीका” के मोहम्मद अडो ने कहा, “हमारे पास प्रचुर मात्रा में स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध है और यह महत्वपूर्ण है कि हम इसका इस्तेमाल अपनी भविष्य की समृद्धि के लिए करें. लेकिन इसका इस्तेमाल करने के लिए, अफ्रीका को उन देशों से धन की आवश्यकता है, जो हमारा शोषण करके समृद्ध हुए हैं।”
शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले बाहरी प्रतिनिधियों में अमेरिकी प्रशासन के जलवायु दूत जॉन केरी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस शामिल हैं. गुतारेस ने कहा है कि वह वित्तपोषण के मुद्दे को ‘जलवायु संकट के ज्वलंत अन्याय’ में से एक के रूप में उठाएंगे.