Monday, September 15, 2025
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Eye Color : आंखों का रंग क्यों होता है अलग-अलग? जानिए क्या है इसके पीछे का विज्ञान

आंखों का रंग मेलेनिन की मात्रा और प्रकाश के बिखराव से तय होता है। भूरी आंखों में मेलेनिन अधिक, नीली में कम और हरी में मध्यम मात्रा होती है, जबकि हेजल आंखों का रंग असमान मेलेनिन वितरण से बनता है। आंखों का रंग आनुवंशिकी से जुड़ा है और समय के साथ बदल सकता है। हेटरोक्रोमिया जैसी दुर्लभ स्थिति में दोनों आंखों का रंग अलग हो सकता है, जो जन्मजात, चोट या स्वास्थ्य कारणों से होता है।

Eye Color : गोल्ड कोस्ट। आप किसी से मिलते हैं और आपकी नजरें उनकी आंखों पर टिक जाती हैं। वे बहुत गहरी, मिट्टी के जैसी भूरी, हल्की नीली, या हरे रंग की हो सकती हैं, जो रोशनी की झिलमिलाहट पड़ने पर बदलती रहती हैं। वह अक्सर पहली चीज होती हैं, जो हम किसी के बारे में नोटिस करते हैं। कभी-कभी ये उस व्यक्ति विशेषताएं होती हैं, जो हमें सबसे अधिक याद रह जाती हैं। दुनिया भर में, इंसानों की आंखों का रंग बहुत विस्तृत होता है। भूरा रंग खासकर अफ्रीका और एशिया में अब तक का सबसे आम रंग है, जबकि नीला रंग उत्तरी और पूर्वी यूरोप में सबसे ज्यादा देखा जाता है। हरा रंग सबसे दुर्लभ है, जो दुनिया की लगभग 2 प्रतिशत आबादी में ही पाया जाता है। हेजल रंग की आंखें और भी विविधतापूर्ण होती हैं, जो अक्सर प्रकाश के अनुसार हरी तो कभी भूरी रंग की दिखाई देती हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि आंखों के रंगों में यह अंतर कैसे होता है? यह सब मेलेनिन की वजह से होता है। मेलेनिन एक प्राकृतिक रंगद्रव्य (पिगमेंट) होता है, जो मेलानोसाइट्स नामक विशेष त्वचा कोशिकाओं में उत्पन्न होता है। यह त्वचा, बालों और आंखों को रंग देता है। इस सवाल का जवाब ‘आइरिस’ में छिपा है, जो पुतली के चारों ओर ऊतक का रंगीन घेरा होता है। यहां ‘मेलेनिन’ अपने ज्यादातर काम करता है।भूरी आंखों में मेलेनिन की मात्रा काफी ज्यादा होती है। इसकी वजह से आंखों में प्रकाश अवशोषित होता है और उनका गहरा रंग हो जाता है। नीली आंखों में मेलेनिन बहुत कम होता है। उनका रंग पिगमेंट से नहीं, बल्कि आइरिस के अंदर प्रकाश के बिखरने से आता है। यह एक भौतिक प्रभाव होता है जिसे टिंडल प्रभाव के रूप में जाना जाता है। यह प्रभाव भी कुछ-कुछ वैसे प्रभाव की तरह होता है, जिसकी वजह से आकाश नीला होता है।

नीली आंखों में, प्रकाश की छोटी नीली तरंगदैर्घ्य (वेवलेंथ) लाल या पीले जैसी लंबी तरंगदैर्घ्य की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से बिखरती है।मेलेनिन की कम सांद्रता (कंसेंस्ट्रेशन) के कारण, कम प्रकाश अवशोषित होता है, जिससे हमें बिखरा हुआ नीला प्रकाश दिखाई देता है। यह नीला रंग पिगमेंट के कारण नहीं, बल्कि आंख की संरचना के साथ प्रकाश के संपर्क के कारण उत्पन्न होता है। हरी आंखें प्रकाश के बिखराव के साथ स्तरित मेलेनिन की मध्यम मात्रा के संतुलन का परिणाम होती हैं। आंखें हरी होने का कारण मध्यम मात्रा में मेलानिन और प्रकाश के बिखराव को माना जाता है। इस संयोजन की वजह से आंखों का रंग हरा होता है। हेजल रंग की आंखें इससे भी अधिक जटिल प्रक्रिया के कारण होती हैं। इनमें पुतली (आइरिस) में मेलानिन असमान रूप से फैला होता है, जिससे रंगों की एक मोजेक (छोटे-छोटे टुकड़ों से बनी चीज) बनती है। परिवेश की रोशनी के अनुसार यह रंग बदल सकता है।

आंखों के रंग का जीन से क्या संबंध है?

आंखों के रंग का आनुवंशिकी से जुड़ाव भी इतना ही रोचक है। लंबे समय तक वैज्ञानिकों का मानना था कि आंखों का रंग एक सरल सिद्धांत से तय होता है। इसका मतलब है कि भूरी आंखों का जीन नीली आंखों के जीन पर हावी होता है। दरअसल पहले वैज्ञानिक मानते थे कि अगर किसी बच्चे को माता से भूरी आंखों का जीन और पिता से नीली आंखों का जीन मिले, तो उसकी आंखों का रंग भूरा होगा। लेकिन अब शोध से पता चला है कि वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल है। समय के साथ आंखों का रंग भी बदलता है। यूरोपीय मूल के कई बच्चे नीली या स्लेटी आंखों के साथ पैदा होते हैं, क्योंकि उनमें मेलेनिन का स्तर अभी भी कम होता है। जीवन के शुरुआती कुछ वर्षों में जैसे-जैसे पिगमेंट धीरे-धीरे बढ़ता है, ये नीली आंखें हरी या भूरी हो सकती हैं।

वयस्क होने पर, आंखों का रंग ज़्यादा स्थिर हो जाता है, हालांकि प्रकाश, कपड़ों या पुतलियों के आकार के आधार पर दिखने में छोटे-मोटे बदलाव आम हैं। उदाहरण के लिए, नीली-स्लेटी आंखें परिवेशी प्रकाश के आधार पर बहुत नीली, बहुत स्लेटी या थोड़ी हरी भी दिखाई दे सकती हैं। ज्यादा स्थायी बदलाव कम ही होते हैं, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ या आइरिस में मेलानिन को प्रभावित करने वाली कुछ चिकित्सीय स्थितियों के कारण ऐसा हो सकता है। हेटरोक्रोमिया एक दुर्लभ लेकिन देखने में बहुत आकर्षक स्थिति है, जिसमें दोनों आंखों का रंग अलग होता है, या कभी-कभी एक ही आंख की पुतली में दो अलग-अलग रंग होते हैं। ऐसा जन्म के समय (आनुवंशिक) से हो सकता है, किसी चोट के कारण हो सकता है, या फिर कुछ विशेष स्वास्थ्य स्थितियों के कारण होता है।

केट बॉस्वर्थ और माइला क्यूनिस जैसी मशहूर हस्तियां हेटरोक्रोमिया के जाने-माने उदाहरण हैं। संगीतकार डेविड बोवी की आंखें भी अलग-अलग रंग की लगती थीं, लेकिन असल में ऐसा एक हादसे के बाद उनकी एक पुतली के हमेशा फैले रहने के कारण हुआ है। इस वजह से ऐसा लगता था कि उनकी आंखों में हेटरोक्रोमिया है, लेकिन यह केवल इल्यूजन (दृष्टि भ्रम) के कारण था। आखिर में, आंखों का रंग सिर्फ आनुवंशिकी और भौतिकी का संयोग नहीं है। यह हमें याद दिलाता है कि जैविकता और सौंदर्य किस तरह आपस में जुड़े होते हैं। आंखें सिर्फ हमें दुनिया दिखाने का काम नहीं करतीं, वे हमें एक-दूसरे से जोड़ने का माध्यम भी हैं। चाहे वो नीली हों, हरी, भूरी, या इन रंगों के बीच कोई अनोखा मेल, हर आंख अपनी एक अलग कहानी कहती है। एक ऐसी कहानी जो हमारे वंश, व्यक्तित्व, और इंसान होने के गहरे सौंदर्य को दर्शाती है।

Mukesh Kumar
Mukesh Kumarhttps://jagoindiajago.news/
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