Sunday, November 17, 2024
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Electoral Bonds पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार को बड़ा झटका

Electoral Bond: लोकसभा चुनाव से करीब 2 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार एवं तमाम राजनीतिक दलों को करारा झटका लगा है। शीर्ष अदालत की संवैधानिक बेंच ने चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को खत्म कर दिया है, जिसे अप्रैल 2019 से लागू किया गया था। इसके अलावा राजनीतिक दलों को आदेश दिया है कि वे चुनावी बॉन्ड से मिली फंडिंग को वापस भी करें। अदालत ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड्स पर आज से ही रोक लगाई जाती है। 12 अप्रैल, 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड्स किन-किन लोगों ने खरीदे और कितनी रकम लगाई, यह जानकारी स्टेट बैंक को देनी होगी। अदालत ने कहा कि यह जानकारी पहले स्टेट बैंक की ओर से चुनाव आयोग को दी जाएगी। फिर आयोग की ओर से जनता को यह जानकारी मिलेगी। अदालत ने कहा कि चुनावी बॉन्ड की इस तरह की खरीद से ब्लैक मनी को बढ़ावा ही मिलेगा। इससे कोई रोक नहीं लगेगी और पारदर्शिता का भी हनन होता है।

RTI एक्ट का उल्लंघन

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद पब्लिक को भी पता होगा कि किसने, किस पार्टी की फंडिंग की है। चार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती दी थी। इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है जिसका दूरगामी असर हो सकता है, खासकर लोकसभा चुनावों के मद्देनजर।

पिछले दरवाजे से रिश्वतखोरी की इजाजत नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने आशंका जताई कि राजनीतिक दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो इसमें रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है। पीठ में शामिल जज जस्टिस गवई ने कहा कि पिछले दरवाजे से रिश्वत को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस स्कीम को सत्ताधारी दल को फंडिंग के बदले में अनुचित लाभ लेने का जरिया बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने मतदाताओं के अधिकार की भी बात की।

चुनावी बॉन्ड को जारी हुए करीब पांच साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन अब भी इसके बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है. बहुत से लोग इसे इंवेस्टमेंट बॉन्ड समझते हैं. तो आइए जानते हैं कि आखिर चुनावी बॉन्ड होता क्या है ?

क्या होता है चुनावी बॉन्ड

चुनावी वचन पत्र की तरह होता है जिसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से किसी भी नागरिक या कंपनी द्वारा खरीदा जा सकता है ये बॉन्ड अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी को दान किए जा सकते हैं. बॉन्ड बैंक नोटों के समान होते हैं जो मांग पर वाहक को देय होते हैं. यह ब्याज मुक्त होते हैं।

दानकर्ता की पहचान नहीं की जाती है उजागर

चुनावी बॉन्ड की खास विशेषता यह है कि इसमें दानकर्ता की पहचान उजागर नहीं की जाती है. जब कोई व्यक्ति या संस्था इन चुनावी बॉन्ड को खरीदता है, तो उनकी पहचान जनता या धन प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल के सामने प्रकट नहीं की जाती है. हालांकि, सरकार और बैंक फंडिंग स्रोतों की वैधता सुनिश्चित इसमें किया जाता है, और ऑडिटिंग के उद्देश्यों के लिए खरीदने वाले के विवरण का रिकॉर्ड रखा जाता है.

कहां मिलता है चुनावी बॉन्ड?

चुनावी बॉन्ड जिसे अंग्रेजी में ‘इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम’ के नाम से भी जाना जाता है. यह भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से लोगों को मिलते हैं. नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कोलकाता और गुवाहाटी सहित कई शहर में यह आपको मिल जाएंगे.

क्या आप भी खरीद सकते हैं ?

इस चुनावी बॉन्ड को कोई भी खरीद सकता है. चुनावी बॉन्ड को भारत का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था चुनावी चंदे के लिए खरीदने का काम कर सकता है. चुनावी बॉन्ड एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं. यदि आप किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा देना चाहते हैं तो एसबीआई से चुनावी बॉन्ड खरीदने में सक्षम हैं. बॉन्ड खरीदकर किसी भी पार्टी को आप दे सकते हैं.आइए आपको बताते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड से किस पार्टी को मिला कितना चंदा.

Electoral Bond: 2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भाजपा को मिला था 2555 करोड़ रुपए का चंदा

इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को 16 हजार करोड़ रुपए का चंदा मिल चुका है. इसमें सबसे ज्यादा बीजेपी का हिस्सा है. चुनाव आयोग और ADR के मुताबिक इसमें 55 फीसदी यानी 6565 करोड़ रुपए चंदा बीजेपी को मिला है. वहीं, साल 2018 से पिछले वित्त वर्ष तक सभी राजनीतिक दलों को 12 हजार करोड़ रुपए मिले हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में भारतीय जनता पार्टी को चुनावी बॉन्ड के जरिए 1450 करोड़ रुपए का चंदा मिला था. वहीं, कांग्रेस को 383 करोड़ रुपए और तृणमूल कांग्रेस को 97.28 करोड़ रुपए का चंदा मिला था. वहीं, 2019 में भाजपा को 2555 करोड़ रुपए मिले थे. इसी साल लोकसभा चुनाव हुए थे. वहीं, साल 2020 कोविड के कारण चुनावी बॉन्ड से मिलने वाले चंदे में भी कमी आई थी. साल 2020-21 में भाजपा को 22.38 करोड़ रुपए, कांग्रेस को 10.07 करोड़ रुपए और टीएमसी को सर्वाधिक 42 करोड़ रुपए मिले थे.

Electoral Bond: साल 2021 में भाजपा को मिला 1032 करोड़ रुपए

साल 2021-22 में भाजपा को चुनावी बॉन्ड के जरिए 1032 करोड़ रुपए मिले थे. तृणमूल कांग्रेस को 528 करोड़ रुपए और कांग्रेस को 236 करोड़ रुपए मिले थे. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने दो नवंबर 2023 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम ने कोर्ट में चुनावी बॉन्ड के याचिका दाखिल की थी. भारत सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रहा था.

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