Vice President CP Radhakrishnan: सीपी राधाकृष्णन भारत के 15वें उपराष्ट्रपति बन गए हैं. उ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार सुबह राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई. राधाकृष्णन ने मंगलवार को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी को 152 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की थी. आइए आपको बताते हैं उनका RSS के स्वयंसेवक से उपराष्ट्रपति बनने तक का सफर कैसा रहा.

‘तमिलनाडु के मोदी’ के नाम से रहे लोकप्रिय
किशोरावस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवक, जनसंघ से राजनीतिक पारी की शुरुआत, 1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद, समर्थकों के बीच ‘तमिलनाडु के मोदी’ के नाम से लोकप्रिय चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन देश के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में एक समृद्ध राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव रखते हैं.
उपराष्ट्रपति के तौर पर राधाकृष्णन के सामने चुनौती
उपराष्ट्रपति के तौर पर उनका सफर अब अलग तरह का होगा, जिसमें उनके सामने कई चुनौतियां भी होंगी. सबसे बड़ी चुनौती राज्यसभा के सभापति के रूप में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच संतुलन बनाने की होगी, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष ने आसन की निष्पक्षता को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं.

मां ने बताई राधाकृष्णन नाम रखने के पीछे की कहानी
उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने पर उनकी मां जानकी अम्माल ने उनका नाम राधाकृष्णन रखे जाने से जुड़ी एक कहानी सुनाई. उन्होंने तमिलनाडु में पत्रकारों से कहा, ‘जब मेरा बेटा पैदा हुआ था तो राष्ट्रपति राधाकृष्णन थे. वह शिक्षक थे और मैं भी शिक्षक थी. उनके सम्मान में मैंने अपने बेटे का नाम राधाकृष्णन रखा. तब मेरे पति ने मेरी ओर देखते हुए कहा था कि तुम अपने बेटे को यह नाम इसलिए दे रही हो क्योंकि तुम उसे एक दिन राष्ट्रपति बनते हुए देखना चाहती हो? मेरे पति ने जो कहा था, 62 साल बाद वह बात सच साबित हो गई.’
राष्ट्रवादी विचारधारा विजयी हुई : राधाकृष्णन
मंगलवार को चुनाव जीतने के बाद अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी में राधाकृष्णन ने कहा, ‘दूसरे पक्ष (विपक्षी गठबंधन) ने कहा कि यह (चुनाव) एक वैचारिक लड़ाई है, लेकिन मतदान के पैटर्न से हमें लगता है कि राष्ट्रवादी विचारधारा विजयी हुई है. उन्होंने कहा, ‘यह हर भारतीय की जीत है, हम सभी को मिलकर काम करना होगा. अगर हमें 2047 तक विकसित भारत बनाना है तो विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा.’

2 बार लोकसभा चुनाव जीता
अब तक महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका निभा रहे राधाकृष्णन किशोरावस्था में ही RSS और जनसंघ से जुड़ गए थे. वह 1990 के दशक के अंत में कोयंबटूर से 2 बार लोकसभा चुनाव जीते और उनके समर्थक उन्हें ‘तमिलनाडु का मोदी’ कहते हैं. राधाकृष्णन ने 1998 और 1999 में कोयंबटूर लोकसभा सीट से दो बार चुनाव जीता, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. हालांकि इसके बाद उन्हें इस सीट से लगातार 3 बार हार का सामना करना पड़ा.
तमिलनाडु में सभी दल करते हैं उनका सम्मान
तमिलनाडु में सभी दलों में उन्हें काफी सम्मान हासिल है और यही वजह है कि भाजपा ने उन्हें कई राज्यों का राज्यपाल बनाया. उन्होंने 31 जुलाई, 2024 को महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में शपथ ली. इससे पहले, उन्होंने लगभग डेढ़ साल तक झारखंड के राज्यपाल के रूप में कार्य किया. झारखंड के राज्यपाल के पद पर रहते हुए, उन्हें तेलंगाना के राज्यपाल और पुडुचेरी के उपराज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था.

विभिन्न राज्यों में राज्यपाल पद संभालने के बाद भी, वह अक्सर तमिलनाडु का दौरा करते रहे हैं. अपने हालिया तमिलनाडु दौरे के दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में भाग लिया और मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन से भी मुलाकात की थी. तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
राधाकृष्णन के पास व्यवसाय प्रबंधन में स्नातक की डिग्री
तमिलनाडु के तिरुपुर में 20 अक्टूबर, 1957 को जन्मे राधाकृष्णन के पास व्यवसाय प्रबंधन में स्नातक की डिग्री है. 16 साल की उम्र में RSS के स्वयंसेवक के रूप में शुरुआत करने वाले राधाकृष्णन 1974 में भारतीय जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य बने. वर्ष 1996 में, राधाकृष्णन को भाजपा की तमिलनाडु इकाई का सचिव नियुक्त किया गया. वह 1998 में कोयंबटूर से पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और 1999 में वह फिर से इस सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. सांसद के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने विभिन्न संसदीय समितियों के अध्यक्ष और सदस्य के रूप में कार्य किया.

तमिलनाडु में BJP के लिए नया गठबंधन बनाने में रही अहम भूमिका
वर्ष 2004 से 2007 के बीच, राधाकृष्णन भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष रहे. इस पद पर रहते हुए, उन्होंने 19,000 किलोमीटर की ‘रथ यात्रा’ की, जो 93 दिन तक चली. एक उत्साही खिलाड़ी राधाकृष्णन टेबल टेनिस में कॉलेज चैंपियन और लंबी दूरी के धावक रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि 2004 में द्रमुक द्वारा राजग से संबंध समाप्त करने के बाद तमिलनाडु में भाजपा के लिए नया गठबंधन बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.