Thursday, December 18, 2025
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‘अरावली को ‘ऊंचाई’ से नहीं, बल्कि ‘पर्यावरणीय योगदान’ के आधार पर आंका जाना चाहिए’, गहलोत ने किया #SaveAravali अभियान का समर्थन

Ashok Gehlot On Save Aravali: कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने अरावली की नई परिभाषा का विरोध करते हुए #SaveAravali अभियान का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि अरावली को उसकी ऊंचाई नहीं, बल्कि पर्यावरणीय योगदान के आधार पर आंका जाना चाहिए.

Ashok Gehlot On Save Aravali: कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने अरावली की नई परिभाषा को उत्तर भारत के पारिस्थितिक भविष्य के लिए खतरा बताते हुए गुरुवार को केंद्र सरकार से इस पर पुनर्विचार करने की मांग की. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने अरावली संरक्षण के पक्ष में ‘सेवअरावली’ अभियान का समर्थन करते हुए सोशल मीडिया पर अपनी ‘प्रोफाइल पिक्चर’ (DP) भी बदली है. उन्होंने कहा कि यह महज एक तस्वीर बदलना नहीं बल्कि उस नई परिभाषा के खिलाफ एक सांकेतिक विरोध है, जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ‘अरावली’ मानने से इनकार किया जा रहा है.

जनता से की अभियान से जुड़ने की अपील

गहलोत ने एक बयान में कहा कि अरावली के संरक्षण को लेकर आए इन बदलावों ने पूरे उत्तर भारत के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है. उन्होंने जनता से भी अपील की है कि वे अपनी ‘डीपी’ बदलकर इस मुहिम का हिस्सा बनें.

गहलोत ने जाहिर की 3 प्रमुख चिंताएं

पूर्व मुख्यमंत्री ने अरावली की नई परिभाषा को अस्तित्व के लिए खतरनाक बताते हुए 3 प्रमुख चिंताएं जाहिर की हैं. गहलोत ने कहा कि अरावली कोई मामूली पहाड़ नहीं बल्कि प्रकृति की बनाई हुई हरित दीवार है. यह थार के रेगिस्तान की रेत और गर्म हवाओं (लू) को दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के उपजाऊ मैदानों की ओर बढ़ने से रोकती है. उन्होंने कहा कि यदि छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोल दिया गया, तो रेगिस्तान हमारे दरवाज़े तक आ जाएगा और तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि होगी.

‘प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका’

गहलोत ने आगे कहा कि ये पहाड़ियां और यहां के जंगल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आसपास के शहरों के लिए फेफड़ों का काम करते हैं. ये धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं. गहलोत ने चिंता जताई कि जब अरावली के रहते हुए स्थिति इतनी गंभीर है तो अरावली के बिना स्थिति कितनी वीभत्स होगी, इसकी कल्पना भी डरावनी है।

पूरी पारिस्थितिकी खतरे में पड़ जाएगी: गहलोत

अरावली को जल संरक्षण का मुख्य आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि इसकी चट्टानें बारिश के पानी को जमीन के भीतर भेजकर भूजल भंडार करती हैं. अगर पहाड़ खत्म हुए तो भविष्य में पीने के पानी की गंभीर किल्लत होगी, वन्यजीव लुप्त हो जाएंगे और पूरी पारिस्थितिकी खतरे में पड़ जाएगी.

‘अरावली को पर्यावरणीय योगदान के आधार पर आंका जाए’

गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि भावी पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए इस परिभाषा पर पुनर्विचार किया जाए. उन्होंने कहा कि अरावली को ‘फीते’ या ‘ऊंचाई’ से नहीं, बल्कि इसके ‘पर्यावरणीय योगदान’ के आधार पर आंका जाना चाहिए।

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Premanshu Chaturvedi
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