नई दिल्ली,सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को स्टे ऑर्डर को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. संविधान पीठ ने कहा कि दीवानी और आपराधिक मामलों में निचली अदालत या उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये स्थगन आदेश 6 माह के बाद अपने आप रद्द नहीं हो सकते.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 2018 के अपने उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि निचली अदालतों के स्थगन आदेश अपने आप रद्द हो जाने चाहिए, जब तक कि उसे विशेष रूप से बढ़ाया न जाए.
दिशानिर्देश जारी करते हुए यह भी कहा गया है कि संवैधानिक अदालतों, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को मामलों के निपटारे के लिए समयसीमा तय करने से बचना चाहिए और ऐसा केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है.
न्यायमूर्ति ए. एस. ओका ने कही ये बात
न्यायमूर्ति ए. एस. ओका ने कहा,”संवैधानिक अदालतों को मामलों का फैसला करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जमीनी स्तर के मुद्दे केवल संबंधित अदालतों को ही पता होते हैं और ऐसे आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पारित किए जा सकते हैं.”
न्यायामूर्ति ओका ने खुद की ओर से और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए फैसला लिखा.उन्होंने कहा,”स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते.”
न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने मामले में एक अलग लेकिन सहमति वाला फैसला लिखा.
यहां आपको बता दें कि शीर्ष अदालत ने 13 दिसंबर 2023 को वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलील सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.