चुनावी सीजन है और ऐसे समय में कार्यकर्ताओं के मन-उपवन में फस्ले-बहार है। किसी के हाथ में कंटीली तलवार है तो किसी के हाथ में फूलों का हार है। पर कार्यकर्ताओं के भी कई प्रकार हैं। एक होते हैं निष्ठावान कार्यकर्ता, इन्हें दरी-कार्यकर्ता का भी नाम दिया जा सकता है, क्योंकि ये पार्टी के हर कार्यक्रम में दरी बिछाने से लेकर हर वो काम करते हैं जो इन्हें सुझाया जाता है। ये कार्यकर्ता 5 वर्ष तक मेहनत करते हैं, लेकिन उनकी किस्मत में टिकट नाम का जैकपॉट कभी नहीं खुलता। 5 वर्ष तक पार्टी इनके हाथ में झुनझुना पकड़ाए रहती है। पैनल तक में इनकी ही चर्चा होती रहती है। लेकिन एन वक्त पर इनका टिकट कट ही जाता है और फिर धनाढ्य पदाधिकारी को बंट ही जाता है। आखिर फिर इनके हिस्से में दरी बिछाना ही आता है।
इस कर्तव्य से ये कभी मुक्त नहीं होते। दूसरे कार्यकर्ता होते हैं, दिखावटी-कार्यकर्ता। ये हर कार्यक्रम में मौके पर पहुंचते हैं और कार्यक्रम की सारी क्रेडिट ले जाते हैं। जब बड़े नेताजी आते हैं तो ऐसे दौड़ते हुए लगते हैं, जैसे कोई रेस हो रही हो और उसमें विजयी होने पर इन्हें मेडल मिलने वाला हो। ये टिकट का इंतजार भी करते हैं और टिकट नहीं मिलने पर बगावती तेवर अपना लेते हैं। पार्टी में इनकी इज्जत तो होती है, लेकिन पार्टी इनसे डरती भी है। आजकल ऐसे ही कार्यकर्ताओं की मान मनौव्वल का दौर चल रहा है। तीसरे कार्यकर्ता जीमण-कार्यकर्ता होते हैं, इन्हें दोनों टाइम का भोजन मिल जाए तो फिर डकारें भरते हुए नेताओं की जयघोष में अपनी सारी ताकत लगा देते हैं। इन्हें टिकट से कोई मतलब नहीं होता। पेट के लिए ये चुनावी आखेट करते हैं। चौथे कार्यकर्ता वे हैं जिन्हें मिर्ची बड़ा कार्यकर्ता का नाम दिया जा सकता है।
मिर्ची बड़े की खुशबू आते ही इन्हें पता चल जाता है और नारे गुंजाते हुए मजे से अपने कर्तव्य की पूर्ति करते हैं। अंतिम कार्यकर्ताओं की नेताओं को बहुत जरूरत रहती है और जहां भी भीड़ बढ़ानी होती है, ये अंतिम पायदान के कार्यकर्ता जुटाए जाते हैं। लेकिन, ध्यान रहें, ये दिहाड़ी कार्यकर्ता होते हैं और इन्हें 200 से 500 रुपए में कहीं भी बुलाया जा सकता है। इनके लिए नेताजी को बस या वाहन का जुगाड़ करना पड़ता है, फिर इन्हें दिल्ली से लेकर दुनिया में कहीं ले जाओ, आने को तैयार रहते हैं और आपकी भीड़ की समस्या मिटा देते हैं। हालांकि यह वर्गीकरण और भी विस्तृत हो सकता है जैसे आलसी कार्यकर्ता, चम्मच कार्यकर्ता लेकिन चुनावी विज्ञान यह कहता है कि मुख्य रूप से उपरोक्त कार्यकर्ता ही चुनावी जमघट का आनंद लेते हैं और नेताओं के घट में बसते हैं। एक फोन कॉल पर ये नेताजी की सेवा में तैयार। फिर क्या है, इन्हें बुलाओ और सभाओं का नाटक कराओ।