नई दिल्ली, वैश्विक ताप वृद्धि के कारण ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने से पृथ्वी की घूर्णन गति में कमी आ रही है जिससे दुनियाभर के समय पर असर पड़ रहा है.एक नए अध्ययन में यह पाया गया है कि इसके कारण सार्व निर्देशांकित काल (कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम… UTC) में से एक सेकंड कम करने की आवश्यकता पड़ सकती है.अध्ययन के लेखक डंकन एग्न्यू ने बताया कि चूंकि पृथ्वी हमेशा एक ही गति से नहीं घूमती है इसलिए यूटीसी में भिन्नता पाई जाती है. उन्होंने बताया कि 1972 के बाद से ही सभी भिन्नताओं में एक ‘लीप सेकंड’ जोड़ने की आवश्यकता है क्योंकि कम्प्यूटिंग और वित्तीय बाजार जैसी कई नेटवर्क संबंधी गतिविधियों में UTC द्वारा उपलब्ध संगत, मानकीकृत और सटीक समय की आवश्यकता होती है.
सर्वविदित है कि हर 4 साल में एक बार फरवरी महीने में एक अतिरिक्त दिन जुड़ जाता है,जिसे लीप वर्ष के रूप में जाना जाता है, हालांकि हर कुछ वर्षों के बाद एक ‘लीप सेकंड’ भी जुड़ जाता है जो आमतौर पर दिसंबर या जून के अंत में होता है.पृथ्वी के घूर्णन की धीमी गति की भरपाई करने और यूटीसी को सौर समय के साथ समकालिक बनाए रखने के लिए समन्वित सार्वभौमिक समय में एक अंतराल सेकंड जोड़ा जाता है जिसे ‘लीप सेकंड’ कहते हैं.
एग्न्यू अमेरिका के सैन डिएगो में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में ‘स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी’ में भूभौतिकविज्ञानी हैं. उनका अध्ययन पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हुआ है.उन्होंने पाया कि हाल के दशकों में पृथ्वी की घूर्णन गति तेज होने के परिणामस्वरूप यूटीसी में कम लीप सेकंड जोड़ने की आवश्यकता होती है.
एग्न्यू ने यह भी पाया कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ के पिघलने में तेजी आने के कारण पृथ्वी की घूर्णन गति पहले के मुकाबले और तेज हुई है और उन्होंने अनुमान जताया कि 2029 तक ‘लीप सेकंड’ कम करने की आवश्यकता नहीं होगी.उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक ताप वृद्धि और वैश्विक समय ‘‘अभिन्न रूप से जुड़े’’ हुए हैं और भविष्य में ऐसा और अधिक हो सकता है.